Supreme Court on Judge: 'आपका आचरण भरोसा पैदा नहीं करता', Yashwant Varma की याचिका खारिज | News
सुप्रीम कोर्ट ने एक जज के खिलाफ इतना कड़ा रुख क्यों अपनाया और क्या है ये पूरा मामला जिसमें जले हुए नोटों से लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक का ज़िक्र है?
न्यायपालिका से जुड़ी एक बहुत बड़ी खबर सामने आई है, जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज, जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस वर्मा ने एक आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें उनके आवास से जली हुई नकदी (Burnt Cash) बरामद होने के मामले में दोषी पाया गया था। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए बेहद तल्ख़ टिप्पणी की और कहा कि "न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता।"
इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब जस्टिस वर्मा के आवास से संदिग्ध नकदी बरामद हुई, जिसके बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने एक इन-हाउस जांच समिति का गठन किया। इस समिति ने जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराते हुए अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी, ताकि उनके खिलाफ उचित कार्रवाई हो सके। जस्टिस वर्मा ने इसी जांच प्रक्रिया और रिपोर्ट को राष्ट्रपति-पीएम को भेजे जाने को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था।
The Supreme Court of India has dismissed a petition filed by Allahabad High Court judge, Justice Yashwant Varma. The petition challenged an in-house inquiry report that found him culpable in a case involving the recovery of burnt cash from his official residence. The SC bench, comprising Justice Dipankar Datta and Justice AG Masih, made strong observations, stating that the judge's conduct does not inspire confidence. The court upheld the legality of the then-CJI sending the inquiry report to the President and Prime Minister for further action, rejecting Varma's claim that the process was unconstitutional.
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